नादान या नासमझ ?
कुछ दिनों से मुझे दो सवाल बहुत परेशान कर रहे थे।
१)ऐसा क्यों है कि जिंदगी मे कुछ लोग बहुत आगे पहुँच जाते है और कुछ लोग बहुत पीछे छूट जाते हैं?
२)अच्छे लोगों के साथ बूरा क्यों होता है?
काफी देर सोचने के बाद मुझे ऐसा लगा कि ये सवाल सूनने मे अलग लगते है पर इनकी जड़ एक ही है। इसी जड़ को एक कथा के माध्यम से दर्शाने का प्रयास मैने किया है।
यह कहानी है एक भिकारी की जो सडक किनारे बैठ कर भिक माँगता था। बडा ही परेशान, उदास, ना कुछ करने कि भूक, ना कोई जीने कि वजह बस किसी तरह जिंदगी को काट रहा था। पर उसका किसमत मे बड़ा विश्वास था और वह हर रोज पूरे दील से भगवान की पूजा करता था। कुछ साल ऐसे ही कडवी जींदगी गुजारने मे चले गए, पर एक दिन भगवान ने ऊसकी बात सुन ली और उसकी जिंदगी बेहतर बनाने के फैसला लिया। एक दिन किमती चीजो से भरी थैली भगवान ने उसके पास रख दी।"तुमने मेरी पूरे दिल से पूजा कि है, ना कभी किसी का बूरा चाहाँ ना कभी किसी को धोका दिया। यह तोफा तुम्हारो लीए । सदा सुखी रहौ", यह कहकर भगवान वहाँ से चले गए। कुछ देर वह भिकारी अपने सोच मे दुबा रहा | होश आनेपर वह उठा, थैली कि पूजी की और भीक मांगने चला गया। कुछ दिन तो वह बहुत खुश था यह सोचकर की उसके साथ कुच अच्छा होगा पर फीर उसने अपनी जींदकी को कोसना शुरू कर दिया।रोज सुबह वह उठता, थैली की पूजा करता और पूरा दिन भीक माँगता| हर दिन वह भगवान से खुदके हालथ की शिकायत करता। वो थैली जिसके बरेमें में बात कर राहा हूँ वो और कुछ नाही बल्की हमारे धार्मिक ग्रंथ, किताबे है। हर कोई उनकी पूजा करनेमे और उनको लेकर लढने, झगडनेमे व्यस्थ है ।
सबकुछ होने के बावजूद भी वह अपनी जींदगी में कुछ न कर सका। उसकी सोच, ना की उसकी किसमत ने उसको बस आगे बढ़ने से रोका बल्कि हमेशा के लिए उसकी खुशिया उससे छिन ली।
तो हम क्या समझे ¯\_( ͡❛ ͜ʖ ͡❛)_/¯
१) हमे वह नहीं मिलता जो हम चाहते है,
बल्कि वह जो हम है।
२) परिस्तिथियां हमे मजबूत नहीं बनाती,
वे सिर्फ हमे खुदसे मिलवाती हैं।
- Parth Jadhav
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